पार्टी-इन-पर्सन: न्यायालय में स्वयं अपनी पैरवी करने का अधिकार

पार्टी-इन-पर्सन: न्यायालय में स्वयं अपनी पैरवी करने का अधिकार

भारत में प्रत्येक व्यक्ति को संविधान द्वारा न्याय पाने का अधिकार प्राप्त है। कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है। सामान्यतः लोग अपनी ओर से वकील नियुक्त करते हैं, लेकिन कई ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो बिना वकील के स्वयं अपनी पैरवी करना चुनते हैं। ऐसे व्यक्तियों को पार्टी-इन-पर्सन” (Party-in-Person) कहा जाता है।

ऐसा करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं — आर्थिक कठिनाइयाँ, वकीलों पर अविश्वास, या यह विश्वास कि वे स्वयं अपने मामले को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। हालांकि, पार्टी-इन-पर्सन के रूप में अदालत में पेश होना आसान कार्य नहीं है। न्यायालयों ने न्यायिक प्रक्रिया को सही दिशा में बनाए रखने के लिए कई नियम और प्रक्रियाएँ निर्धारित की हैं, जो सिविल, क्रिमिनल और हाईकोर्ट के मामलों में अलग-अलग होती हैं।

 

सिविल मामलों में पार्टी-इन-पर्सन

सिविल मामलों में सामान्यतः संपत्ति, अनुबंध, धन की वसूली, पारिवारिक विवाद आदि से जुड़ी बातें होती हैं। सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 के तहत कोई भी व्यक्ति बिना वकील के स्वयं अपना केस दायर कर सकता है और उसकी पैरवी कर सकता है।

सिविल न्यायालयों में प्रक्रिया

  1. मामले की फाइलिंग: यदि वादी (Plaintiff) केस दायर कर रहा है तो उसे वातपत्र (Plaint) तैयार कर दाखिल करना होगा। यदि प्रतिवादी (Defendant) है तो लिखित बयान (Written Statement) दाखिल करना होगा।
  2. वकालतनामा की आवश्यकता नहीं: स्वयं पैरवी करने वाले व्यक्ति को वकालतनामा देने की आवश्यकता नहीं होती। इसके स्थान पर वह एक आवेदन या मेमो दाखिल करता है जिसमें यह उल्लेख होता है कि वह स्वयं पेश हो रहा है।
  3. साक्ष्य और जिरह: पार्टी-इन-पर्सन को स्वयं साक्ष्य प्रस्तुत करने, गवाहों से जिरह करने और हलफनामे दाखिल करने की प्रक्रिया पूरी करनी होती है।
  4. अदालती आचरण: अदालत ऐसे व्यक्तियों को कुछ हद तक मार्गदर्शन करती है ताकि वे प्रक्रिया में न उलझें, लेकिन उनसे उचित आचरण और अनुशासन बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है।

हालांकि सिविल अदालतें पार्टी-इन-पर्सन के प्रति अपेक्षाकृत लचीली होती हैं, फिर भी प्रक्रियात्मक जटिलताओं और साक्ष्य संबंधी नियमों को समझना चुनौतीपूर्ण रहता है।

 

क्रिमिनल मामलों में पार्टी-इन-पर्सन

आपराधिक (Criminal) मामलों में स्थिति अधिक संवेदनशील होती है क्योंकि ये समाज के विरुद्ध अपराधों से संबंधित होते हैं। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 के तहत अभियुक्त (Accused) और शिकायतकर्ता (Complainant) दोनों को स्वयं पैरवी करने का अधिकार है।

क्रिमिनल न्यायालयों में प्रक्रिया

  1. अभियुक्त के रूप में: अभियुक्त स्वयं अपना बचाव कर सकता है। हालांकि, न्यायालय सामान्यतः उसे विधिक सहायता (Legal Aid) लेने की सलाह देता है ताकि मुकदमा निष्पक्ष रूप से चले।
  2. शिकायतकर्ता के रूप में: निजी शिकायतों में, जैसे धारा 138, चेक बाउंस मामलों में, शिकायतकर्ता अक्सर स्वयं पेश होते हैं।
  3. गंभीर अपराधों में: हत्या या यौन अपराध जैसे गंभीर मामलों में अदालत सामान्यतः वकील की अनिवार्यता पर ज़ोर देती है। यदि अभियुक्त वकील नहीं रख सकता, तो उसे अनुच्छेद 39A के तहत निःशुल्क विधिक सहायता दी जाती है।
  4. अदालत की अनुमति: कुछ मामलों में पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश होने से पहले अदालत की अनुमति आवश्यक होती है, ताकि मुकदमे की प्रक्रिया में बाधा न आए।

इस प्रकार, आपराधिक मामलों में स्वयं पैरवी करना संभव तो है, लेकिन यह अत्यंत कठिन और जोखिमपूर्ण भी हो सकता है।

 

हाईकोर्ट में पार्टी-इन-पर्सन

हाईकोर्ट में सामान्यतः रिट याचिकाएँ, अपीलें और जटिल कानूनी प्रश्नों की सुनवाई होती है। यहाँ पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश होने की अनुमति होती है, लेकिन अदालतें यह सुनिश्चित करती हैं कि न्यायिक समय और प्रक्रिया प्रभावित न हो।

हाईकोर्ट में प्रक्रिया

  1. अनुमति हेतु आवेदन: इच्छुक व्यक्ति को स्वयं पेश होने की अनुमति के लिए आवेदन देना होता है।
  2. रजिस्ट्रार या जज द्वारा जांच: कई हाईकोर्ट (जैसे दिल्ली और बॉम्बे हाईकोर्ट) में व्यक्ति को रजिस्ट्रार या जज के समक्ष उपस्थित होकर यह दिखाना होता है कि उसे मूलभूत कानूनी समझ है।
  3. अदालती मर्यादा: पार्टी-इन-पर्सन को पेशेवर ढंग से कपड़े पहनने, उचित भाषा का प्रयोग करने और दस्तावेज़ नियमानुसार दाखिल करने होते हैं।
  4. Amicus Curiae की नियुक्ति: यदि अदालत को लगता है कि व्यक्ति स्वयं अपना पक्ष प्रभावी रूप से नहीं रख पा रहा है, तो वह एक Amicus Curiae (न्याय मित्र) नियुक्त कर सकती है।
  5. तुच्छ या दुरुपयोगी याचिकाओं पर रोक: कुछ लोग इस अधिकार का दुरुपयोग कर बार-बार निरर्थक याचिकाएँ दाखिल करते हैं। ऐसे मामलों में अदालतें उन पर प्रतिबंध लगा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट में पार्टी-इन-पर्सन की अनुमति

सुप्रीम कोर्ट में कोई भी व्यक्ति पार्टी-इन-पर्सन के रूप में स्वयं अपनी याचिका दायर कर सकता है — चाहे वह रिट याचिका (Article 32) हो, स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) हो, या कोई अन्य आवेदन।

परंतु, हर कोई सीधे अदालत में खड़ा होकर दलीलें नहीं दे सकता। इसके लिए कोर्ट से पूर्व अनुमति (Permission) आवश्यक होती है।

अनुमति की प्रक्रिया:

  1. पार्टी-इन-पर्सन आवेदन: इच्छुक व्यक्ति को “Application for Permission to Appear and Argue in Person” दाखिल करनी होती है।
  2. रजिस्ट्रार की जांच: सुप्रीम कोर्ट का Registrar (Judicial) आवेदन की प्रारंभिक जांच करता है और यह तय करता है कि मामला कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करने योग्य है या नहीं।
  3. कोर्ट की अनुमति: कई बार रजिस्ट्रार आवेदन को जजों की बेंच के समक्ष रखता है, जहाँ यह तय किया जाता है कि व्यक्ति को स्वयं पेश होने की अनुमति दी जाए या नहीं।
  4. कानूनी समझ का मूल्यांकन: यदि यह प्रतीत होता है कि व्यक्ति को विधिक या प्रक्रियात्मक ज्ञान नहीं है, तो कोर्ट उसे Amicus Curiae (न्याय मित्र) की सहायता प्रदान कर सकती है या उसे वकील नियुक्त करने की सलाह दे सकती है।

 

पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश होने की चुनौतियाँ

स्वयं पैरवी का अधिकार सशक्तिकारी है, लेकिन इसके साथ कई कठिनाइयाँ भी जुड़ी हैं —

  • कानून की जटिलता: विधिक प्रशिक्षण के बिना धाराओं, मिसालों और प्रक्रिया को समझना कठिन होता है।
  • भावनात्मक पक्ष: व्यक्ति अपने मामले से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है, जिससे वस्तुनिष्ठ (Objective) तर्क रखना मुश्किल हो सकता है।
  • अदालती अपेक्षाएँ: न्यायालय पार्टी-इन-पर्सन से भी वही पेशेवर और प्रक्रियात्मक मानक अपेक्षित करते हैं जो वकीलों से अपेक्षित हैं।

फिर भी, कई लोगों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार या सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर स्वयं अपनी पैरवी कर सफल उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।

भारतीय न्याय प्रणाली में पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश होना एक संवैधानिक और वैध अधिकार है। यह इस सिद्धांत को दर्शाता है कि न्याय केवल वकील रखने वालों के लिए नहीं, बल्कि हर नागरिक के लिए सुलभ है।

सिविल मामलों में स्वयं पैरवी अपेक्षाकृत सरल होती है, लेकिन आपराधिक और हाईकोर्ट मामलों में यह अधिक जटिल और सावधानी की मांग करती है। न्यायालय पेशेवर वकीलों की सहायता लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, परंतु वे उन नागरिकों के साहस और आत्मविश्वास का भी सम्मान करते हैं जो स्वयं न्यायालय के समक्ष खड़े होकर अपनी बात रखते हैं।

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